भक्त मंडली

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?

चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?


चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?
पथ पर टिके नयनों को कब मिल पायेगा विश्राम ?
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कौशल्या उर रहता सशंकित , है विपत्ति का समय ,
बस द्वार ही निहारती आंखियों में आंसू थाम !
चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?
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भरत-जननी का ह्रदय तपता है पश्चाताप से ,
सकुशल आ जायें तीनों , आये तब आराम !
चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?
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चिंता सुमित्रा की यही लक्ष्मण निभाए सेवा-धर्म ,
चूक जाये वो यदि 'सौमित्र' नहीं नाम !
चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?
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नंदी -ग्राम में भरत गिन रहे एक-एक दिन ,
की एक दिन देरी प्रभु ने त्याग दूंगा प्राण !
चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?
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रोक अश्रु नयनों में संयम से दिन जो काटती ,
उर्मिला उर की व्यथा भला कौन सकता जान !
चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?
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शत्रुघ्न भी हो गए अब धीर व् गंभीर ,
मांडवी संग श्रुतिकीर्ति रखती हैं सबका ध्यान !
चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?
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चौदह बरस वनवास के या मारकेश की दशा ,
स्तब्ध है श्री राम बिन साकेत पुण्य धाम !
चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?
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राम संग गए नहीं केवल सिया-लखन ,
वे ले गए हैं साथ साकेत की मुस्कान !
चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?
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राम बिन साकेत भया श्रीहीन व् अनाथ ,
राम बिन साकेत की सब मिट गयी पहचान !
चौदह बरस कब पूर्ण होंगे ?आयेंगें कब राम ?

शिखा कौशिक 'नूतन' 

रविवार, 16 मार्च 2014

है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !

है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !
मयतनया का कहा हुआ सच होने लगा प्रतीत ,
अजर-अमर-पावन है जग में सियाराम की प्रीत ,
सिया-हरण का पाप उसे अब करता है भयभीत ,
है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !
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सीता के अश्रु अंगारे  बनकर उसे जलावेंगें ,
पतिव्रता के श्राप असर रावण पर आज दिखावेंगे ,
उसकी काम-पिपासा ही मृत्यु का कारण होगी ,
आज दशानन राम-वाण चल तेरा दम्भ मिटावेंगें ,
''सत्यमेव-जयते'' की जग में चली आ रही रीत !
है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !
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अनुज विभीषण ने भी उसको कितना समझाया था ,
''सीता लौटा दें' ये उसको तनिक नहीं भाया था ,
पद-प्रहार कर भरी सभा में किया अनुज अपमानित ,
परम हितैषी को शत्रु का चोला पहनाया था ,
आज कचोटे क्षण-क्षण उसको उसका दुष्ट अतीत !
है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !
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गिरे मनोबल से रावण जब युद्ध-भूमि में आया ,
मायापति को निज माया का अद्भुत तेज दिखाया ,
श्री राम ने खेल खिलाकर अंतिम वाण चलाया ,
नाभि का अमृत सूखा दशशीश को काट गिराया ,
धर्म-पताका फहराई प्रण पूरण हुआ पुनीत !
 है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !

शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 5 मार्च 2014

सीता पे लांछन था लगा ,रावण ने उनको क्यूँ हरा ?




पिछली एक पोस्ट

[समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन]

 पर श्री दुली चंद करेल जी की ये टिप्पणी प्राप्त हुई -

बारम्बार बनावट ने सत्य को रौंदा है।
रावण नीच तो सीता पवित्र कैसे?

अब ऐसे कुत्सित -विचारों का क्या उत्तर दिया जाये ?माता सीता की पवित्रता पर इस प्रकार के लांछन लगाना कोई नयी बात नहीं .माता सीता ने क्यूँ लांघी लक्ष्मण -रेखा और १६ दिसंबर २०१२ को सामूहिक दुष्कर्म की शिकार दामिनी के रात्रि में घूमने पर पुरुष -वर्ग ऊँगली उठाता ही रहा है .मर्यादा का प्रहरी पुरुष वर्ग अपनी करनी पर जरा भी ध्यान देता तो न सिया-हरण होता न द्रौपदी का चीर-हरण पर दुःख की बात है पुरुष-वर्ग हर बार स्त्री को ही दोषी ठहरा देता है -
सीता पे लांछन था लगा ,रावण ने उनको क्यूँ हरा ?
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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कामी ,लम्पट ,कापुरुष ने ; छल-युक्त कर्म था किया ,
महापुरुष श्री राम से प्रतिशोध इस भांति लिया ,
पाप था दशशीश का ; दंड सीता ने भरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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कट गए रावण के सिर ; हुई धर्म की स्थापना ,
पितृ-सत्ता से हुआ ; सियाराम का तब सामना ,
अग्नि-परीक्षा लेने का राम ने निर्णय करा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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सीता के एक स्पर्श से अग्नि भी पावन हो गयी ,
श्री राम की अर्द्धांगिनी सीता महारानी भयी ,
लेकिन सिया की शुद्धि पर संदेह -जलद फिर आ घिरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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है यही अब प्रचलित श्री राम ने त्यागी सिया ,
पर बहुत सम्भव सिया ने अवध-त्याग स्वयं किया ,
स्वाभिमानी जानकी पर तर्क ये उतरे खरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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सीता को वापस लाने का पुनः खेल था रचा गया ,
शुद्धि -परीक्षा का पुनः आग्रह किया गया ,
सीता के प्राण ले लिए पर दम्भ नर का न मरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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त्रेता हो या कलियुग ; धरा पर राज नर ही कर रहे ,
रावण-दुशासन रूप नर हर युग में छलकर धर रहे ,
अपने किये दुष्कर्म का आरोप नारी सिर धरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
शिखा कौशिक 'नूतन 

मंगलवार, 4 मार्च 2014

समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन


घाव  लगें जितनें भी तन पर कहलाते आभूषण ,
वीर का लक्ष्य  करो शीघ्र ही शत्रु -दल  का मर्दन ,
अडिग -अटल हो करते रहते युद्ध -धर्म का पालन ,
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !
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युद्ध सदा लड़ते हैं योद्धा बुद्धि -बाहु  बल से ,
कापुरुषों की भाँति न लड़ते हैं माया -छल से ,
शीश कटे तो कटे किन्तु पल भर को न झुकता है ,
आज अभी लेते निर्णय क्या करना उनको कल से !
राम-वाण के आगे कैसे टिक सकता है रावण ?
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !
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सिया -हरण का पाप करे जब रावण इस धरती पर ,
सज्जन ,साधु ,संत सभी रह जाते हैं पछताकर ,
उस क्षण योद्धा लेता प्रण अपने हाथ उठाकर ,
फन कुचलूँगा हर पापी का कहता वक्ष फुलाकर ,
सुन ललकार राम की हिलता लंका का सिंहासन !
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !
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गर्जन-तर्जन मार-काट मचता है हा-हा कार ,
कटती गर्दन -हस्त कटें बहती रक्त की धार ,
रणभूमि का करते योद्धा ऐसे ही श्रृंगार ,
गिर-गिर उठकर पुनः-पुनः करते हैं वार-प्रहार ,
वीरोगति रूप मृत्यु का कहलाता सुन्दरतम !
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

'कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी '


रघुकुल के उज्ज्वल भाल पर कालिख न लगने पायेगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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मेरे ह्रदय में हर घड़ी मेरे प्रभु का वास है ,
मेरे प्रभु को भी मेरी शुद्धि पर विश्वास है ,
बस ये तसल्ली उर में ले वनवास सीता जायेगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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अपवाद जिस दिन से उठा मेरे प्रभु गम्भीर थे ,
सीता की निंदा हो रही ये सोचकर अधीर थे ,
अपने प्रिय के शोक का कारण नहीं कहलायेगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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विष पी रहे प्रभु मेरे नीलकंठ बन ,
इसीलिए मैं कर रही वन को हूँ गमन ,
राम की अर्द्धांगिनी अपना वचन निभाएगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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गर्भ में प्रभु-अंश है जन्म देगी उसको जब ,
रघुकुल का वो गौरव बने ऐसी शिक्षा देगी सब ,
नारी को सम्मान दो सीता उसे सिखाएगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 18 जनवरी 2014

विषमयी जीवन राम कर रहा वहन

Shri Ram HD
विषमयी जीवन राम कर रहा वहन ,
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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स्नेहमयी कैकेयी माता कैसे विषैली हो गयी ?
राम से बढ़कर प्रिय राज्य -लक्ष्मी हो गयी !!
प्रेम से कह देती माँ करता मैं वनगमन !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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पुत्र-प्रेम से विवश पितु मेरे व्यथित भए ,
काल की गति कुटिल मुख से वे कुछ न कहें ,
पर राम तो निभाएगा प्राण देकर भी वचन !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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हो गयी बेसुध मेरी जननी भी ये जानकर ,
कर रहा वन को गमन मैं वेष तापस धारकर कर ,
दृढ उर से कर रहे सिया लखन अनुसरण !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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रोक रहे नर व् नारी 'राम मत जाओ ',
तुम ही राजा हो हमारे मान भी जाओ ,
बिन तुम्हारे तय हमारा अब तो है मरण !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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जन जन से मेरी प्रार्थना धीरज धरो तुम सब ,
चौदह बरस कट जायेंगें विपदा मिटेंगीं सब ,
मेरा ही रूप हैं प्रिय भरत व् शत्रुघ्न !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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बहकी प्रजा चल पड़ी श्री राम के पीछे ,
मुरझायी हुई पौध हम राम ही सींचें ,
तमसा किनारे देंगें हम आमरण अनशन !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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मध्य-रात्रि में सब करने लगे शयन ,
सिया लखन सहित किया मैंने था गमन ,
प्रणाम कर उन जन को जिनके उर में नहीं छल !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !

शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 15 जनवरी 2014

चौदह बरस विरह-ताप को कैसे सहेगी उर्मिला ?


देख कर उर्मिल का मुख ,
माँ का ह्रदय व्यथित हुआ ,
दैव ने नव-वधु को
क्यूँ ये दारुण दुःख दिया ?
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भर आये अश्रु नयनों में ,
जननी लखन की हुई विकल ,
मन में उठे ये भाव थे ,
होनी ही होती है प्रबल !
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लाये थे भ्रात चारो जब ,
ब्याह कर वधू साकेत में ,
आनंद छा गया था तब ,
दशरथ के इस निकेत में !
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वो दिवस और आज का ,
दोनों में कितना भेद है !
कैकेयी जीजी को भी अपनी
करनी पर अब खेद है !
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ये सोचती सुमित्रा ने
उर्मिल से बस इतना कहा ,
आ निकट पुत्री ! मेरी
न मन ही मन अश्रु बहा !
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उर्मिल ने देखा मात को
आई वहाँ उनके निकट ,
माता की पीड़ा देखकर
उर गया उर्मिल का फट !
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बोली दबाकर पीड़ा निज
माँ ! आज आप मौन हैं !
बस देखती एकटक मुझे
और सब कुछ गौण है !
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माता ने देखा नेह से
उर्मिल निकट ही थी खड़ी ,
नन्ही सी उनकी उर्मिला
करने लगी बातें बड़ी !
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उर के समीप लाइ तब
ममता छलकने थी लगी ,
मुरझाये न दुःख -ताप से
मेरी सुकोमल सी कली !
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चौदह बरस विरह-ताप को
कैसे सहेगी उर्मिला ?
जब मैं स्वयं अधीर हूँ
कैसे दूं इसको सांत्वना ?
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देख माता को विकल
उर्मिल ने बस इतना कहा ,
हे मात! रखिए धैर्य
टल जायेगा संकट महा !
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मैं हूँ जनक की नंदनी
सीता की छोटी हूँ बहन ,
हमको सिखाया मात ने
कैसे निभाते पत्नी-धर्म ?
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विचलित नहीं व्यथित नहीं ,
मुझको अटल विश्वास है ,
आयेंगें लौट सब कुशल ,
चौदह बरस की बात है !
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आप चिंतित न हो माँ !
है ये परीक्षा की घडी ,
धर्म -पथ पर बढे प्रिय
उर्मिल भी उस पर बढ़ चली !
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अब शोक मात !त्यागिये ,
उर्मिल निवेदन कर रही ,
हैं आप ही सम्बल मेरा
हे मात ! आप महिमामयी !
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उर्मिल वचन फुहार से
माँ का ह्रदय शीतल भया ,
मनोकामना बस हो कुशल से
लखन संग रघुबर-सिया !

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

''लंका में सन्नाटा है !!''


नाभि का अमृत सुखा राम ने लंकेश शीश को काटा है !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
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भूमि पर गिरा दशानन जब स्तब्ध रह गए त्रिलोक ,
सहसा कैसे विश्वास करें मिट गया पाप का मूल स्रोत ,
ध्वजा कटी अन्याय की फहरी धर्म-पताका है !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
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अब सिया-राम का हो मिलन उत्कंठित है लक्ष्मण का उर ,
श्री राम ने भेजा हनुमत को जो चले ह्रदय में हर्ष भर ,
श्री राम भक्त हनुमत को देख अति हर्षित सीता माता हैं !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
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बोले हनुमत हे मात ! सुनो श्री राम ने मारा रावण को ,
भगवन ने मुझको भेजा है आदर से आपको लाने को ,
ये दास आपके चरणों में श्रद्धा से शीश झुकाता है !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
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पहुंची सीता माता ज्यूँ ही हनुमत के संग श्री राम समक्ष ,
''शुद्धि परीक्षा 'देने की श्री राम ने रख दी कठिन शर्त ,
नाग पितृ-सत्ता का यूँ स्त्री के डंक चुभाता है !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
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''अग्नि-परीक्षा'' दे सिया श्री राम के चरणों में झुकी ,
पाकर सीता मृगनयनी को मुदित भये करुणा के निधि ,
जो खेल रचा है होनी ने अनायास ही होता जाता है !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
शिखा कौशिक 'नूतन'